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कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा | शाही शायरी
kaun kahta hai ki maut aai to mar jaunga

ग़ज़ल

कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा

अहमद नदीम क़ासमी

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कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा

तेरा दर छोड़ के मैं और किधर जाऊँगा
घर में घिर जाऊँगा सहरा में बिखर जाऊँगा

तेरे पहलू से जो उठ्ठूँगा तो मुश्किल ये है
सिर्फ़ इक शख़्स को पाऊँगा जिधर जाऊँगा

अब तिरे शहर में आऊँगा मुसाफ़िर की तरह
साया-ए-अब्र की मानिंद गुज़र जाऊँगा

तेरा पैमान-ए-वफ़ा राह की दीवार बना
वर्ना सोचा था कि जब चाहूँगा मर जाऊँगा

चारासाज़ों से अलग है मिरा मेआ'र कि मैं
ज़ख़्म खाऊँगा तो कुछ और सँवर जाऊँगा

अब तो ख़ुर्शीद को गुज़रे हुए सदियाँ गुज़रीं
अब उसे ढूँडने मैं ता-ब-सहर जाऊँगा

ज़िंदगी शम्अ' की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'
बुझ तो जाऊँगा मगर सुब्ह तो कर जाऊँगा