कौन होते हैं वो महफ़िल से उठाने वाले
यूँ तो जाते भी मगर अब नहीं जाने वाले
आह-ए-पुर-सोज़ की तासीर बुरी होती है
ख़ुश रहेंगे न ग़रीबों को सताने वाले
कूचा-ए-यार में हम को तो क़ज़ा लाई है
जान जाएगी मगर हम नहीं जाने वाले
हम को क्या काम किसी और परी से तौबा
आप भी ख़ूब हैं बे-पर की उड़ाने वाले
जिस क़दर चाहिए बिठलाइए पहरे दर पर
बंद रहने के नहीं ख़्वाब में आने वाले
क्या क़यामत है कि रुलवा के हमें ऐ 'जौहर'
क़हक़हे मार के हँसते हैं रुलाने वाले
ग़ज़ल
कौन होते हैं वो महफ़िल से उठाने वाले
लाला माधव राम जौहर