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कौन है किस का गिरफ़्तार न समझा जाए | शाही शायरी
kaun hai kis ka giraftar na samjha jae

ग़ज़ल

कौन है किस का गिरफ़्तार न समझा जाए

जमील यूसुफ़

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कौन है किस का गिरफ़्तार न समझा जाए
यही बेहतर है ये असरार न समझा जाए

मैं ने कब दुनिया में आने की तमन्ना की थी
मुझ को दुनिया का तलबगार न समझा जाए

सारी दुनिया को बदलना कोई आसान नहीं
किसी दीवाने को बे-कार न समझा जाए

उस को बातिन से सरोकार है ज़ाहिर से नहीं
दीन को रौनक़-ए-बाज़ार न समझा जाए

इक यही बात तो है इस में समझने वाली
मुझे काफ़िर उसे दीं-दार न समझा जाए

तेरी दुनिया में तिरे हुस्न का शैदाई हूँ
ऐ ख़ुदा मुझ को गुनहगार न समझा जाए

नौ-ए-इंसाँ की बड़ाई का तक़ाज़ा है यही
रंग और नस्ल को मेआर न समझा जाए