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कौन देता रहा सहरा में सदा मेरी तरह | शाही शायरी
kaun deta raha sahra mein sada meri tarah

ग़ज़ल

कौन देता रहा सहरा में सदा मेरी तरह

शाज़ तमकनत

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कौन देता रहा सहरा में सदा मेरी तरह
आज तन्हा हूँ मगर कोई तो था मेरी तरह

मैं तिरी राह में पामाल हुआ जाता हूँ
मिट न जाए तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मेरी तरह

मैं ही तन्हा हूँ फ़क़त तेरी भरी दुनिया में
और भी लोग हैं क्या मेरे ख़ुदा मेरी तरह

रंग-ए-अर्बाब-ए-रज़ा-पेशा मुबारक हो तुझे
कोई होता ही नहीं तुझ से ख़फ़ा मेरी तरह

किस को हासिल हो तिरी चश्म-ए-सियह के आगे
मंसब-ए-सिलसिला-ए-जुर्म-ओ-ख़ता मेरी तरह

आश्ना कौन है नक़्श-ए-क़दम-ए-निकहत का
याद किस को है तिरे घर का पता मेरी तरह

'शाज़' तारा नहीं टूटा कोई दिल टूटा है
राह तकता था शब-ए-ग़म कोई क्या मेरी तरह