कौन बताए क्या है हक़ीक़त और बना अफ़्साना क्या
दिल की बस्ती क्या बस्ती है बसना क्या लुट जाना क्या
बरसों ने जो रिश्ते जोड़े पल भर ने वो तोड़ दिए
प्यारे! अब टूटे टुकड़ों से अपना जी बहलाना क्या
आज तो जूँ-तूँ कट जाएगा कल की सोचो क्या होगा
जो गुज़री सो गुज़र चुकी इतराना क्या पछताना क्या
कैसा तूफ़ाँ कैसी बलाएँ यारो! ये भी सोचो तो
सीखा है मर मर के जीना जीते-जी मर जाना क्या
जाने कितने डूबने वाले साहिल पर भी डूब गए
प्यारे! तूफ़ानों में रह कर इतना भी घबराना क्या
तन्हा तन्हा जी के देखा साथ भी जी के देख लिया
हम ने क्या समझा है जीना औरों को समझाना क्या
सूद-ओ-ज़ियाँ की बातें छोड़ो और ही बातें छेड़ो भी
इश्क़ के हाथों क्या खोया है क्या पाया दोहराना क्या
अपनी राम-कहानी में भी जग-बीती का जादू था
पलकें झपकी जाती हैं अब ख़त्म हुआ अफ़्साना क्या

ग़ज़ल
कौन बताए क्या है हक़ीक़त और बना अफ़्साना क्या
ख़लीक़ सिद्दीक़ी