कट न पाए ये फ़ासले भी अगर
और उस पर ये राब्ते भी अगर
जो तुम्हारी तरफ़ नहीं खुलते
बंद निकले वो रास्ते भी अगर
ख़ैर हो तेरी बे-नियाज़ी की
अब नहीं ख़ुद-परस्त थे भी अगर
क्या करेंगे सिवाए ख़्वाहिश के
मोहलत-ए-यक-नफ़्स मिले भी अगर
उम्र भर के ज़ियाँ का मोल नहीं
चंद लम्हे चुरा लिए भी अगर
ख़ूँ-बहा कौन देगा जज़्बों का
ब'अद मरने के जी उठे भी अगर
कौन समझेगा इस्तिआरों को
कुछ न बोलेंगे हाशिए भी अगर
ग़ज़ल
कट न पाए ये फ़ासले भी अगर
शकील जाज़िब