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कट गईं सारी पतंगें डोर से | शाही शायरी
kaT gain sari patangen Dor se

ग़ज़ल

कट गईं सारी पतंगें डोर से

असलम हबीब

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कट गईं सारी पतंगें डोर से
चलती हैं कैसे हवाएँ ज़ोर से

बेवफ़ा सारे परिंदे हो गए
दोस्ती अपनी भी थी इक मोर से

चंद जज़्बे जंग में मशग़ूल थे
रात-भर मैं सो न पाया शोर से

आख़िरश सूरज उड़ा के ले गए
भीक कब तक माँगते हम भोर से

इक न इक दिन सर्द झोंके आएँगे
राब्ता रखिए घटा-घंघोर से

क़ब्र पे आँसू बहा के आए हैं
बाग़ में मिलने गए थे मोर से

मैं ये समझा था क़यामत आ गई
आदमी चीख़ा था इतनी ज़ोर से