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कट गई रात सुब्ह होती है | शाही शायरी
kaT gai raat subh hoti hai

ग़ज़ल

कट गई रात सुब्ह होती है

सय्यद अाग़ा अली महर

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कट गई रात सुब्ह होती है
सुन मिरी बात सुब्ह होती है

बातों ही में गुज़र गई शब-ए-वस्ल
अब कहाँ रात सुब्ह होती है

अब भी सूरा कि बज रहा है गजर
अरे बद-ज़ात सुब्ह होती है

रात जब जा चुकी तो कहते हो
अब कहाँ घात सुब्ह होती है

अब कहाँ है शब-ए-शबाब ऐ 'मेहर'
जागो हैहात सुब्ह होती है