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कसरत में भी वहदत का तमाशा नज़र आया | शाही शायरी
kasrat mein bhi wahdat ka tamasha nazar aaya

ग़ज़ल

कसरत में भी वहदत का तमाशा नज़र आया

जिगर मुरादाबादी

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कसरत में भी वहदत का तमाशा नज़र आया
जिस रंग में देखा तुझे यकता नज़र आया

जब उस रुख़-ए-पुर-नूर का जल्वा नज़र आया
काबा नज़र आया न कलीसा नज़र आया

ये हुस्न ये शोख़ी ये करिश्मा ये अदाएँ
दुनिया नज़र आई मुझे तो क्या नज़र आया

इक सरख़ुशी-ए-इश्क़ है इक बे-ख़ुदी-ए-शौक़
आँखों को ख़ुदा जाने मिरी क्या नज़र आया

जब देख न सकते थे तो दरिया भी था क़तरा
जब आँख खुली क़तरा भी दरिया नज़र आया

क़ुर्बान तिरी शान-ए-इनायत के दिल ओ जाँ
इस कम-निगही पर मुझे क्या क्या नज़र आया

हर रंग तिरे रंग में डूबा हुआ निकला
हर नक़्श तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा नज़र आया

आँखों ने दिखा दी जो तिरे ग़म की हक़ीक़त
आलम मुझे सारा तह-ओ-बाला नज़र आया

हर जल्वे को देखा तिरे जल्वों से मुनव्वर
हर बज़्म में तू अंजुमन-आरा नज़र आया