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करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ | शाही शायरी
karte nahin jafa bhi wo tark-e-wafa ke sath

ग़ज़ल

करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ

अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची

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करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ
ये कौन सा सितम है दिल-ए-मुब्तला के साथ

अब वो जबीन-ए-शौक़ कहीं और क्यूँ झुके
वाबस्ता हो गई जो तिरे नक़्श-ए-पा के साथ

वारफ़्ता-ए-जमाल का आलम न पूछिए
दीवाना-वार उठती हैं नज़रें सदा के साथ

सुर्ख़ी तुम्हारे हाथ की कहती है साफ़ साफ़
शामिल है मेरे दिल का लहू भी हिना के साथ

तकमील-ए-आरज़ू की ख़ुशी और ग़म-ए-हयात
दोनों ही इब्तिदा से रहे इंतिहा के साथ

शामिल मिरी हयात में यूँ है ग़म-ए-हयात
जैसे ख़बर हो अपने किसी मुब्तदा के साथ

'वसफ़ी' मिरी हयात ने मंज़िल को पा लिया
कुछ दिन गुज़ार आया जो इक पारसा के साथ