करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ
ये कौन सा सितम है दिल-ए-मुब्तला के साथ
अब वो जबीन-ए-शौक़ कहीं और क्यूँ झुके
वाबस्ता हो गई जो तिरे नक़्श-ए-पा के साथ
वारफ़्ता-ए-जमाल का आलम न पूछिए
दीवाना-वार उठती हैं नज़रें सदा के साथ
सुर्ख़ी तुम्हारे हाथ की कहती है साफ़ साफ़
शामिल है मेरे दिल का लहू भी हिना के साथ
तकमील-ए-आरज़ू की ख़ुशी और ग़म-ए-हयात
दोनों ही इब्तिदा से रहे इंतिहा के साथ
शामिल मिरी हयात में यूँ है ग़म-ए-हयात
जैसे ख़बर हो अपने किसी मुब्तदा के साथ
'वसफ़ी' मिरी हयात ने मंज़िल को पा लिया
कुछ दिन गुज़ार आया जो इक पारसा के साथ
ग़ज़ल
करते नहीं जफ़ा भी वो तर्क-ए-वफ़ा के साथ
अब्दुल रहमान ख़ान वासिफ़ी बहराईची