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करते हैं अगर मुझ से वो प्यार तो आ जाएँ | शाही शायरी
karte hain agar mujhse wo pyar to aa jaen

ग़ज़ल

करते हैं अगर मुझ से वो प्यार तो आ जाएँ

शफ़ीक़ ख़लिश

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करते हैं अगर मुझ से वो प्यार तो आ जाएँ
फिर आ के चले जाएँ इक बार तो आ जाएँ

है वक़्त ये रुख़्सत का बख़्शिश का तलाफ़ी का
समझें न जो गर उस को बेकार तो आ जाएँ

इक दीद की ख़्वाहिश पे अटका है ये दम मेरा
कम करना हो मेरा कुछ आज़ार तो आ जाएँ

जाँ देने को राज़ी हूँ ऐ पैक-ए-अजल लेकिन
कुछ देर तो रुक जाओ सरकार तो आ जाएँ

जाएँ न 'ख़लिश' ले कर हम सू-ए-अदम हसरत
मक़्सूद हो उन को भी दीदार तो आ जाएँ