करता है कोई और भी गिर्या मिरे दिल में
रहता है कोई और भी मुझ सा मिरे दिल में
वो मिल गया फिर भी ये लगातार उदासी
शायद है कोई और भी धड़का मिरे दिल में
इक रंज में डूबा हुआ बे-नाम मुसाफ़िर
आया था बड़ी दूर से ठहरा मिरे दिल में
जिस शाम को भूले हुए इक उम्र हुई थी
चमका है उसी शाम का तारा मिरे दिल में
इक हूक सी उठती है सर-ए-बाम-ए-तमन्ना
वो मेरी ख़ुशी से कभी रहता मिरे दिल में
आए हैं यहाँ तक तो चलो उस से भी मिल लें
ये ध्यान भी इक बार तो आया मिरे दिल में
जिस आग को कहते हैं क़यामत से नहीं कम
बहता है उसी आग का दरिया मिरे दिल में
ग़ज़ल
करता है कोई और भी गिर्या मिरे दिल में
साबिर वसीम