EN اردو
करना पड़ा था जिस के लिए ये सफ़र मुझे | शाही शायरी
karna paDa tha jis ke liye ye safar mujhe

ग़ज़ल

करना पड़ा था जिस के लिए ये सफ़र मुझे

अलीम अफ़सर

;

करना पड़ा था जिस के लिए ये सफ़र मुझे
वो मौज-ए-शौक़ छोड़ गई रेत पर मुझे

आदाब-ए-बज़्म के सिवा कुछ और तो न था
महफ़िल में उस ने पान दिए ख़ास कर मुझे

लौटा हूँ फिर वो जिस्म की वीरानियाँ लिए
हसरत से देखते हैं ये दीवार-ओ-दर मुझे

बाज़ार का तो होश है लेकिन नहीं ये याद
कल रात कौन छोड़ गया मेरे घर मुझे

आँखों का नूर सीने में महफ़ूज़ कर लिया
इस शहर में जो होना पड़ा बे-बसर मुझे

इस के सिवा ये राज़ भला कौन जानता
वो सब को गालियों से नवाज़े मगर मुझे