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करिश्मा-साज़-ए-अज़ल क्या तिलिस्म बाँधा है | शाही शायरी
karishma-saz-e-azal kya tilism bandha hai

ग़ज़ल

करिश्मा-साज़-ए-अज़ल क्या तिलिस्म बाँधा है

महमूद अयाज़

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करिश्मा-साज़-ए-अज़ल क्या तिलिस्म बाँधा है
परीदा रंग है हर नक़्श फिर भी प्यारा है

तू रू-ब-रू हो तो ऐ रू-ए-यार तुझ से कहें
वो हर्फ़-ए-ग़म कि हरीफ़-ए-ग़म-ए-ज़माना है

कभी तो हम पे उठे चश्म-ए-आश्ना की तरह
वो इक निगाह कि सद-गर्दिश-ए-ज़माना है

हमारी आँखों से नैरंगी-ए-जहाँ देखो
हमारी आँखों में इक उम्र-ए-सद-तमाशा है

हवा-ए-शौक़ वो दिन किस ख़िज़ाँ के साथ गए
तमाम उम्र हुई इंतिज़ार-ए-फ़र्दा है