करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़
ख़त-ए-पियाला सरासर निगाह-ए-गुल-चीं है
कभी तो इस दिल-ए-शोरीदा की भी दाद मिले
कि एक उम्र से हसरत-परस्त-ए-बालीं है
बजा है गर न सुने नाला-हा-ए-बुलबुल-ए-ज़ार
कि गोश-ए-गुल नम-ए-शबनम से पमबा-आगीं है
'असद' है नज़'अ में चल बेवफ़ा बरा-ए-ख़ुदा
मक़ाम-ए-तर्क-ए-हिजाब ओ विदा-ए-तम्कीं है
ग़ज़ल
करे है बादा तिरे लब से कस्ब-ए-रंग-ए-फ़रोग़
मिर्ज़ा ग़ालिब