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कर्बला का रास्ता रौशन हुआ | शाही शायरी
karbala ka rasta raushan hua

ग़ज़ल

कर्बला का रास्ता रौशन हुआ

नाज़ क़ादरी

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कर्बला का रास्ता रौशन हुआ
फिर लहू का मअ'रका रौशन हुआ

कौन था आख़िर वो जिस की ज़ात से
ज़िंदगी का ज़ाविया रौशन हुआ

जज़्बा-ए-ईसार-ओ-क़ुर्बानी के नाम
ख़ाक-ओ-ख़ूँ का सिलसिला रौशन हुआ

बारे तुझ पे ऐ फ़ुरात-ए-बे-कराँ
तिश्नगी का मर्तबा रौशन हुआ

मुंहदिम होने लगी दीवार-ए-जाँ
जिस्म का ज़ुल्मत-कदा रौशन हुआ

क़दग़नें जितनी लगाईं वक़्त ने
दिल-ज़दों का हौसला रौशन हुआ

'नाज़' का आहंग-ए-ताज़ा देखना
फ़िक्र-ओ-फ़न का दायरा रौशन हुआ