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कर्ब चेहरों पे सजाते हुए मर जाते हैं | शाही शायरी
karb chehron pe sajate hue mar jate hain

ग़ज़ल

कर्ब चेहरों पे सजाते हुए मर जाते हैं

मालिकज़ादा जावेद

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कर्ब चेहरों पे सजाते हुए मर जाते हैं
हम वतन छोड़ के जाते हुए मर जाते हैं

ज़िंदगी एक कहानी के सिवा कुछ भी नहीं
लोग किरदार निभाते हुए मर जाते हैं

उम्र-भर जिन को मयस्सर नहीं होती मंज़िल
ख़ाक राहों में उड़ाते हुए मर जाते हैं

कुछ परिंदे हैं जो सूखे हुए दरियाओं से
इल्म की प्यास बुझाते हुए मर जाते हैं

ज़िंदा रहते हैं कई लोग मुसाफ़िर की तरह
जो सफ़र में कहीं जाते हुए मर जाते हैं

उन का पैग़ाम मिला करता है ग़ैरों से मुझे
वो मिरे पास ख़ुद आते हुए मर जाते हैं

जिन को अपनों से तवज्जोह नहीं मिलती 'जावेद'
हाथ ग़ैरों से मिलाते हुए मर जाते हैं