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करम हो या सितम सर अपना ख़म यूँ भी है और यूँ भी | शाही शायरी
karam ho ya sitam sar apna KHam yun bhi hai aur yun bhi

ग़ज़ल

करम हो या सितम सर अपना ख़म यूँ भी है और यूँ भी

ख़िज़्र बर्नी

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करम हो या सितम सर अपना ख़म यूँ भी है और यूँ भी
तिरा दीवाना तो साबित-क़दम यूँ भी है और यूँ भी

जफ़ा हो या वफ़ा उस का करम यूँ भी और यूँ भी
नवाज़िश रोज़-ओ-शब और दम-ब-दम यूँ भी है और यूँ भी

भुला दें या करें हम याद-ए-ग़म यूँ भी है और यूँ भी
किसी के हिज्र में ख़ुद चश्म-ए-नम यूँ भी है और यूँ भी

हयात-ओ-मौत का मक़्सद समझ में आ नहीं सकता
वगरना आदमी मजबूर-ए-ग़म यूँ भी है और यूँ भी

मिली रोने से जब फ़ुर्सत तो आँसू पी लिए हम ने
मोहब्बत के लिए गोया भरम यूँ भी है और यूँ भी

बग़ावत कोई करता है रज़ा पर है कोई क़ाइल
वो है मा'बूद उस का तो करम यूँ भी है और यूँ भी

निगाह-ए-नाज़ से वो देख कर नज़रें चुराता है
हमारा दिल 'ख़िज़र' मश्क़-ए-सितम यूँ भी है और यूँ भी