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कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग | शाही शायरी
kar rahe hain mujhse tujh-bin dida-e-namnak jang

ग़ज़ल

कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग

वली उज़लत

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कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग
दाग़-ए-दिल जूँ शम्अ' करते हैं जुदा बेबाक जंग

इश्क़ पर ग़ालिब रहा मजनूँ वो तिनके सा नहीफ़
ये वो जागह है कि शो'ले से करे ख़ाशाक जंग

नईं दिमाग़-ए-हिज्र तेरा शम्अ' के शो'ले की तरह
खा गई है मुझ को गिर कर मुझ से अपनी नाक जंग

मैं नहीं शाकी फ़लक का हिज्र के अय्याम में
मुझ से जूँ सुब्ह अपनी ही करती है जेब-ए-चाक जंग

बादशाह-ए-इश्क़ ने मुझ को दिए हैं ये ख़िताब
आफ़त-उल-मुल्क और फ़नाउद्दौला 'उज़लत'-ख़ाक-जंग