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कर के सागर ने किनारे मुस्तरद | शाही शायरी
kar ke sagar ne kinare mustarad

ग़ज़ल

कर के सागर ने किनारे मुस्तरद

शादाब उल्फ़त

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कर के सागर ने किनारे मुस्तरद
कर दिए अपने सहारे मुस्तरद

शर्म-गीं नज़रों ने उस की कर दिए
मेरी आँखों के इशारे मुस्तरद

आप के आँचल में सज कर जी उठे
थे फ़लक पर जो सितारे मुस्तरद

उस से मिल कर फूल शबनम चाँदनी
हो गए सब इस्तिआ'रे मुस्तरद

राह दिखला ही न आएँ जो दुरुस्त
कर दिए जाएँ ऐसे तारे मुस्तरद

आप से मुझ को मिली है दाद अब
या'नी पिछले शे'र सारे मुस्तरद