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कमी रखता हूँ अपने काम की तकमील में | शाही शायरी
kami rakhta hun apne kaam ki takmil mein

ग़ज़ल

कमी रखता हूँ अपने काम की तकमील में

आफ़ताब हुसैन

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कमी रखता हूँ अपने काम की तकमील में
मबादा आप खो जाऊँ कहीं तमसील में

बहुत शिद्दत रही पहले कनार-ए-चश्म तक
उमड आया है अब वो सैल रूद-ए-नील में

मकान-ए-जाँ लरज़ता है हवा-ए-हिज्र से
चराग़-ए-याद को रक्खेंगे किस क़िंदील में

ये घड़ियाँ आह पे मुझ से गुरेज़ाँ हैं अगर
तो फिर मैं क्यूँ रहूँगा वक़्त की तहवील में

अज़ाब-ए-बर्क़-ओ-बाराँ था अँधेरी रात थी
रवाँ थीं कश्तियाँ किस शान से इस झील में