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कलियों में ताज़गी है न ख़ुश्बू गुलाब में | शाही शायरी
kaliyon mein tazgi hai na KHushbu gulab mein

ग़ज़ल

कलियों में ताज़गी है न ख़ुश्बू गुलाब में

सोहन राही

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कलियों में ताज़गी है न ख़ुश्बू गुलाब में
पहली सी रौशनी कहाँ जाम-ए-शराब में

पूछो न मुझ से इश्क़-ओ-मोहब्बत के सिलसिले
लज़्ज़त सी मिल रही है मुझे हर अज़ाब में

ये राज़ जानती न थी तारों की रौशनी
कितना हसीन चाँद छुपा था नक़ाब में

दो काँपते लरज़ते लबों की नवाज़िशें
लहरा के ढल गईं मिरे जाम-ए-शराब में

हम हैं गुनाहगार मगर इस क़दर नहीं
जितने गुनाह आए हैं अपने हिसाब में

लिक्खी गई जो मेरे ही ख़्वाबों के ख़ून से
राही मिरा ही नाम नहीं उस किताब में