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कलियों की तरह धुला धुला है | शाही शायरी
kaliyon ki tarah dhula dhula hai

ग़ज़ल

कलियों की तरह धुला धुला है

जमशेद मसरूर

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कलियों की तरह धुला धुला है
वो जिस्म शुमाल में बना है

गुल-बार हैं ज़ुल्फ़ ओ शाना उस के
क़ामत में वो तवील ओ दिलरुबा है

लम्हों के समुंदर में जैसे
बहता हुआ चाँद आ रहा है

होंटों से वो देखता है मुझ को
आँखों से मुझे पुकारता है

गुज़री है रमों में उम्र मेरी
हिरनों से मिरा मुआशिक़ा है

'जमशेद' सँभल के उस बदन पर
बस ख़ंदा-ए-सुर्ख़ की रिदा है