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कली कली में निहाँ हिचकिचाहटें पहचान | शाही शायरी
kali kali mein nihan hichkichahaTen pahchan

ग़ज़ल

कली कली में निहाँ हिचकिचाहटें पहचान

नज़ीर तबस्सुम

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कली कली में निहाँ हिचकिचाहटें पहचान
तू शाख़-ए-गुल पे गुल-ए-नौ की आहटें पहचान

लहू की आँख से पढ़ मेरे ज़ब्त की तहरीर
लबों पे लफ़्ज़ न गिन कपकपाहटें पहचान

मैं पंखुड़ी की तरह अपने होंट वा कर दूँ
तू तितलियों की तरह गुनगुनाहटें पहचान

महाज़ खोल दिया है तो गहरी नींद न सो
हवा के भेस में हैं संसनाहटें पहचान

ये झूटे नग हैं मगर हुस्न से तराशे हैं
तू जौहरी है अगर जगमगाहटे पहचान

वो काला साँप है तुझ को नज़र न आएगा
तू झाड़ियों में छुपी सरसराहटें पहचान

'नज़ीर' लोग तो चेहरे बदलते रहते हैं
तू इतना सादा न बन मुस्कुराहटें पहचान