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कलेजा रह गया उस वक़्त फट कर | शाही शायरी
kaleja rah gaya us waqt phaT kar

ग़ज़ल

कलेजा रह गया उस वक़्त फट कर

पवन कुमार

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कलेजा रह गया उस वक़्त फट कर
कहा जब अलविदा उस ने पलट कर

तसल्ली किस तरह देता उसे मैं
मैं ख़ुद ही रो पड़ा उस से लिपट कर

अकेला रह गया हूँ कारवाँ में
कहाँ तक आ गई तादाद घट कर

न कोई अक्स बाक़ी था न सूरत
रखा जो आइना मैं ने उलट कर

परिंदा और उड़ना चाहता था
उफ़ुक़ ही रह गया ख़ुद में सिमट कर

न बच पाएँगे पर्बत बंदिशों के
मोहब्बत की नदी निकली है कट कर