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कल उस के चेहरे को हम ने जो आफ़्ताब लिखा | शाही शायरी
kal uske chehre ko humne jo aaftab likha

ग़ज़ल

कल उस के चेहरे को हम ने जो आफ़्ताब लिखा

नज़ीर अकबराबादी

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कल उस के चेहरे को हम ने जो आफ़्ताब लिखा
तो उस ने पढ़ के वो नामा बहुत इ'ताब लिखा

जबीं को मह जो लिखा तो कहा हो चीं-ब-जबीं
ये कैसी उस की समझ थी जो माहताब लिखा

चमकते दाँतों को गौहर लिखा तो हँस के कहा
सितारे उड़ गए थे जो दुर-ए-ख़ुश-आब लिखा

लिखा जो मुश्क-ए-ख़ता ज़ुल्फ़ को तो बल खा कर
कहा ख़ता की जो ये हर्फ़-ए-ना-सवाब लिखा

गुलाब अरक़ को लिखा तो ये बोला नाक चढ़ा
उसे न इत्र मयस्सर था जो गुलाब लिखा

जिगर कबाब लिखा अपना तो कहा जल कर
भला जी क्या मैं शराबी था जो कबाब लिखा

हिसाब-ए-शौक़ का दफ़्तर लिखा तो झुँझला कर
कहा मैं क्या मुतसद्दी था जो हिसाब लिखा

जो बे-हिसाब लिखा इश्तियाक़-ए-दिल तो कहा
वो किस हिसाब में है ये भी बे-हिसाब लिखा

हुए जो रद्द-ओ-बदल ऐसे कितने बार नज़ीर
तो उस ने ख़त का हमारे न फिर जवाब लिखा