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कल तलक जो था तसव्वुर अंजुमन-आराइयों का | शाही शायरी
kal talak jo tha tasawwur anjuman-araiyon ka

ग़ज़ल

कल तलक जो था तसव्वुर अंजुमन-आराइयों का

वलीउल्लाह वली

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कल तलक जो था तसव्वुर अंजुमन-आराइयों का
वो मुक़द्दर बन गया है अब मिरी तन्हाइयों का

ज़िंदगानी फिर बिखरने टूटने वाली है शायद
ऐ ज़मीं फिर आ गया मौसम तिरी अंगड़ाइयों का

इस जहाँ में आज जिस के सर पे ताज-ए-ख़ुसरवी है
सारा क़िस्सा बस इसी के नाम है दानाइयों का

आदमी मुझ को बनाया है उन्ही रुस्वाइयों ने
है अज़ल से साथ मेरा और मिरी रुस्वाइयों का

ऐ 'वली' रिश्ता समुंदर से है दिल का कुछ यक़ीनन
कोई अंदाज़ा लगा पाया न उन गहराइयों का