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कल तक उस की वो मेहरबानी थी | शाही शायरी
kal tak uski wo mehrbani thi

ग़ज़ल

कल तक उस की वो मेहरबानी थी

मिर्ज़ा जवाँ बख़्त जहाँदार

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कल तक उस की वो मेहरबानी थी
आज देखा तो सरगिरानी थी

किया ग़मगीन उस ने हम को नित
जिस के मिलने की शादमानी थी

गो ब-ज़ाहिर वो ग़ैर से था दो-चार
हम से भी दोस्ती निभानी थी

जल-बुझे तब खुला पतंगों पर
शम्अ और दोस्ती ज़बानी थी

आ गया रहम उस के दिल में आह
हम ने यूँ अपनी मर्ग ठानी थी

सो गया सुनते ही वो ग़म की मिरे
सरगुज़िश्त उस के तईं कहानी थी

न 'जहाँदार' जाने था ऐ 'मीर'
दोस्ती मुद्दई-ए-जानी थी