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कल रात जगमगाता हुआ चाँद देख कर | शाही शायरी
kal raat jagmagata hua chand dekh kar

ग़ज़ल

कल रात जगमगाता हुआ चाँद देख कर

मोहम्मद अल्वी

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कल रात जगमगाता हुआ चाँद देख कर
साए निकल पड़े थे बदन से इधर उधर

दरवाज़ा बंद कर के बहुत ख़ुश हुआ था मैं
कोठे फलांगने लगीं रुस्वाइयाँ मगर

मैं डूबने गया तो किनारा पुकार उठा
ये ख़्वाब तो नहीं है प साहब इधर किधर

मातम भी हो ही जाएगा मर के तो देखिए
इतने बहुत से लोग हैं इतने बहुत से घर

'अल्वी' ग़ज़ल तो कहने चले हो नई मगर
रख दो न तुम ख़याल के बख़िये अधेड़ कर