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कल मैं इन्ही रस्तों से गुज़रा तो बहुत रोया | शाही शायरी
kal main inhi raston se guzra to bahut roya

ग़ज़ल

कल मैं इन्ही रस्तों से गुज़रा तो बहुत रोया

ख़ुर्शीद रिज़वी

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कल मैं इन्ही रस्तों से गुज़रा तो बहुत रोया
सोची हुई बातों को सोचा तो बहुत रोया

दिल मेरा हर इक शय को आईना समझता है
ढलते हुए सूरज को देखा तो बहुत रोया

जो शख़्स न रोया था तपती हुई राहों में
दीवार के साए में बैठा तो बहुत रोया

आसाँ तो नहीं अपनी हस्ती से गुज़र जाना
उतरा जो समुंदर में दरिया तो बहुत रोया

जिस मौज से उभरा था उस मौज पे क्या गुज़री
सहरा में वो बादल का टुकड़ा तो बहुत रोया

हम तेरी तबीअत को 'ख़ुर्शीद' नहीं समझे
पत्थर नज़र आता था रोया तो बहुत रोया