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कल का वादा न करो दिल मिरा बेकल न करो | शाही शायरी
kal ka wada na karo dil mera bekal na karo

ग़ज़ल

कल का वादा न करो दिल मिरा बेकल न करो

आफ़ताब शाह आलम सानी

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कल का वादा न करो दिल मिरा बेकल न करो
कल पड़ेगी न मुझे मुझ से ये कल कल न करो

कहीं जला दे न उसे शोला-ए-आह-ए-आशिक़
पलकों की टट्टी के तईं आँखों की ओझल न करो

कर चुकी तेग़-ए-निगाह काम तो पल ही में तमाम
तीर पलकों का मुक़ाबिल मिरे पल पल न करो

उस को हर शब है ज़वाल उस को नहीं है कुछ नक़्स
बद्र को चेहरे से उस के मुतमस्सिल न करो

दुख न पावे कहीं वो नाज़नीं-गर्दन प्यारे
तकिया ज़िन्हार सर-ए-बालिश-ए-मख़मल न करो