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कल हम से मुलाक़ात में वो यार जो की बहस | शाही शायरी
kal humse mulaqat mein wo yar jo ki bahs

ग़ज़ल

कल हम से मुलाक़ात में वो यार जो की बहस

मिस्कीन शाह

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कल हम से मुलाक़ात में वो यार जो की बहस
मैं भी वहीं इक बात में बेज़ार हो की बहस

लड़ते न किसी तरह से उस से कभी हरगिज़
पर क्या करूँ उस वक़्त मैं लाचार हो की बहस

लाया था मिरे दिल की गिरफ़्तारी का सामान
इस वास्ते मैं उस से ब-तकरार हो की बहस

समझा के लगा कहने कि आ हम से तू मिल जा
मैं तेरे लिए बर-सर-ए-बाज़ार हो की बहस

'मिस्कीन' न जो तू हम से अगर दिल से मिलेगा
क्यूँ तू ने मिरा मिस्ल-ए-ख़रीदार हो की बहस