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कैसी सोहबत है कैसी तन्हाई | शाही शायरी
kaisi sohbat hai kaisi tanhai

ग़ज़ल

कैसी सोहबत है कैसी तन्हाई

अंजुम सलीमी

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कैसी सोहबत है कैसी तन्हाई
हम हैं इक दूसरे की तन्हाई

पहला दिन है ज़मीं पे आदम का
पहली हिजरत है पहली तन्हाई

आधे बिस्तर पे आ बढ़ो तुम भी
बाँट लें आधी आधी तन्हाई

गुफ़्तुगू ने थका दिया है बहुत
आ मिरी दोस्त मेरी तन्हाई

जब ख़ुदा भी नहीं था साथ मरे
मुझ पे बीती है ऐसी तन्हाई

मैं ने समझी ज़बाँ ख़मोशी की
ऐसी मज्लिस से अच्छी तन्हाई