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कैसी कैसी नहीं करता रहा मन-मानी मैं | शाही शायरी
kaisi kaisi nahin karta raha man-mani main

ग़ज़ल

कैसी कैसी नहीं करता रहा मन-मानी मैं

भवेश दिलशाद

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कैसी कैसी नहीं करता रहा मन-मानी मैं
सोच कर अपने लिए लिखता था ला-फ़ानी मैं

भीड़ में सब की तरह ज़ुल्म पे चुप-चाप रहा
आज फिर इक दफ़अ' मर गया इंसानी मैं

पैदा होने के तो मतलब न रहे होंगे कुछ
बस कि अब मरना नहीं चाहता बे-मा'नी मैं

एक तारीख़ की ता'मीर करे वो लम्हा
एक समुंदर जो रचे बूँद वही या'नी मैं