कैसी है ये बहार मुक़द्दर की बात है
दामन है तार-तार मुक़द्दर की बात है
क्या क़हर है कि रंग है फूलों का ज़र्द ज़र्द
काँटों पे है निखार मुक़द्दर की बात है
इस मुख़्तसर हयात में इतनी मुसीबतें
किस को है इख़्तियार मुक़द्दर की बात है
ऐ दोस्त आगही हमें कोशिश के बावजूद
आई न साज़गार मुक़द्दर की बात है
हर-गाम पर फ़रेब दिए जिस नसीब ने
फिर उस पे ए'तिबार मुक़द्दर की बात है
साहिल से हम-कनार करे या डुबो ही दे
मौजों का ये उभार मुक़द्दर की बात है
'जाँबाज़' ग़ैर के लिए दुनिया की ने'मतें
मेरे लिए है दार मुक़द्दर की बात है
ग़ज़ल
कैसी है ये बहार मुक़द्दर की बात है
सत्यपाल जाँबाज़