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कैसे कैसे मंज़र मेरी आँखों में आ जाते हैं | शाही शायरी
kaise kaise manzar meri aankhon mein aa jate hain

ग़ज़ल

कैसे कैसे मंज़र मेरी आँखों में आ जाते हैं

सग़ीर अालम

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कैसे कैसे मंज़र मेरी आँखों में आ जाते हैं
यादों के सब ख़ंजर मेरी आँखों में आ जाते हैं

मेरी प्यासी आँखें फिर भी रह जाती हैं प्यासी हैं
यूँ तो सात-समुंदर मेरी आँखों में आ जाते हैं

किस की याद का दरिया मेरे दिल से हो कर बहता है
किस के दर्द पिघल कर मेरी आँखों में आ जाते हैं

किस की याद की ख़ुश्बू से मैं दिन-भर महका रहता हूँ
किस के ख़्वाब सँवर कर मेरी आँखों में आ जाते हैं

जब भी सोचने लगता हूँ मैं तेरे मेरे बारे में
आटा दलिया दफ़्तर मेरी आँखों में आ जाते हैं