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कैसे कहें दर-ब-दर नहीं हम | शाही शायरी
kaise kahen dar-ba-dar nahin hum

ग़ज़ल

कैसे कहें दर-ब-दर नहीं हम

मोहसिन एहसान

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कैसे कहें दर-ब-दर नहीं हम
घर में भी हैं और घर नहीं हम

जो राह में साथ छोड़ जाएँ
ऐसों के तो हम-सफ़र नहीं हम

अपनों की कोई ख़बर न रक्खें
इतने भी तो बे-ख़बर नहीं हम

उठ जाए कब अपना आब-ओ-दाना
इंसाँ हैं कोई ख़िज़र नहीं हम

देखें न उठा के आँख उस को
ऐसे भी तो कम-नज़र नहीं हम

सच है कि ख़ुदा के रू-ब-रू भी
शर्मिंदा ख़ताओं पर नहीं हम

हर अन-कही बात सुन रहे हैं
दीवार हैं कोई दर नहीं हम