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कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है | शाही शायरी
kaise kah dun ki mulaqat nahin hoti hai

ग़ज़ल

कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है

शकील बदायुनी

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कैसे कह दूँ की मुलाक़ात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है

आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी
दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है

छुप के रोता हूँ तिरी याद में दुनिया भर से
कब मिरी आँख से बरसात नहीं होती है

हाल-ए-दिल पूछने वाले तिरी दुनिया में कभी
दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है

जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कि कैसे हो 'शकील'
इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है