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कैसा अजीब आया है इस साल का बजट | शाही शायरी
kaisa ajib aaya hai is sal ka bajaT

ग़ज़ल

कैसा अजीब आया है इस साल का बजट

खालिद इरफ़ान

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कैसा अजीब आया है इस साल का बजट
मुर्ग़ी का जो बजट है वही दाल का बजट

जितनी है इक क्लर्क की तनख़्वाह आज कल
उतना है बेगमात के इक गाल का बजट

सिर्फ़ एक दिन में बीस मुसाफ़िर हुए हलाक
हाज़िर है साईं गुलशन-ए-इक़बाल का बजट

टीवी का ये मज़ाक़ अदीबों के साथ है
शाएर से दुगना रख दिया क़व्वाल का बजट

बिछड़े थे जब ये लोग महीना था जून का
सोहनी बना रही थी महींवाल का बजट

दामाद को निकाल के जब भी हुआ है पेश
सालों ने पास कर दिया ससुराल का बजट

बिकती है अब किताब भी कैसेट के रेट पे
कैसे बनेगा 'ग़ालिब' ओ 'इक़बाल' का बजट

माँ कह रही थी रंग लिपस्टिक के देख कर
चट कर दिया बहू ने मिरे लाल का बजट

दोनों बने हैं बाइस-ए-तकलीफ़ आज-कल
'इसहाक़'-डार और नए साल का बजट