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कई सराब मिले तिश्नगी के रस्ते में | शाही शायरी
kai sarab mile tishnagi ke raste mein

ग़ज़ल

कई सराब मिले तिश्नगी के रस्ते में

मज़हर इमाम

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कई सराब मिले तिश्नगी के रस्ते में
रुकावटें हैं बहुत रौशनी के रस्ते में

हमारा आप का सर फोड़ना मुक़द्दर है
सनम खड़े हैं अभी आदमी के रस्ते में

है उस का साथ तो लब पर यही दुआ है कि फिर
न आए और कोई ज़िंदगी के रस्ते में

वहाँ मिला भी तो अपना ही आश्ना सा ये
खड़े थे देर से हम रौशनी के रस्ते में

नई है फ़िक्र मगर लफ़्ज़ तो पुराने हैं
क़दामतें हैं वहीं ताज़गी के रस्ते में