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कई दिनों से उसे मुझ से कोई काम नहीं | शाही शायरी
kai dinon se use mujhse koi kaam nahin

ग़ज़ल

कई दिनों से उसे मुझ से कोई काम नहीं

हबीब कैफ़ी

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कई दिनों से उसे मुझ से कोई काम नहीं
यही सबब है कि मुझ से दुआ सलाम नहीं

अभी सफ़र में हूँ चलना मिरा मुक़द्दर है
पहुँच गया हूँ जहाँ वो मिरा मक़ाम नहीं

फ़ज़ा कसीफ़ किए जा रहे हैं लोग मगर
लगाता उन पे यहाँ पर कोई निज़ाम नहीं

वो लौटने का बहाना भी ढूँड सकता है
ख़याल है मिरा लेकिन ख़याल ख़ाम नहीं

तुम्हारे महल की बुनियाद में हैं दफ़्न मगर
कोई भी महल में लेता हमारा नाम नहीं