कई दिलों में पड़ी इस से शोर-ओ-शर की तरह
तिरा ख़याल है उड़ती हुई ख़बर की तरह
नहीं है ताब-ए-नज़र कम-अयार आँखों में
चमक रहा है वो चेहरा दुकान-ए-ज़र की तरह
हटेगी गर्द-ए-मह-ओ-साल किस के हाथों से
ज़माना बंद पड़ा है क़दीम दर की तरह
ख़याल-ए-ग़ैर निकलता नहीं मिरे दिल से
किसी के घर में ये बैठा है अपने घर की तरह
ठिठक गया मैं उसे अपने सामने पा कर
मुझे लगा वो गुज़रगाह-ए-पुर-ख़तर की तरह
सुकूँ के साथ थकन भी है उस की यादों में
गुज़िश्ता उम्र है भूले हुए सफ़र की तरह
पस-ए-अदा-ए-नज़र छुप गई है तारीकी
वो बे-नक़ाब हुआ अव्वलीं सहर की तरह
जो मेरे सामने मुद्दत के बा'द आया था
गुज़र गया है उचटती हुई नज़र की तरह
ढले हैं इन में मिरी ज़िंदगी के शाम-ओ-सहर
हैं मेरे शेर हिकायात-ए-मुख़्तसर की तरह
ग़ज़ल
कई दिलों में पड़ी इस से शोर-ओ-शर की तरह
ज़ाहिद फ़ारानी