कैफ़ जो रूह पे तारी है तुझे क्या मालूम 
उम्र आँखों में गुज़ारी है तुझे क्या मालूम 
निगह-ए-अव्वल-ए-बेबाक ने मेरे दिल पर 
तेरी तस्वीर उतारी है तुझे क्या मालूम 
मेहर या क़हर तिरे चाहने वाले के लिए 
हर अदा जान से प्यारी है तुझे क्या मालूम 
वक़्त कटता ही नहीं सुब्ह-ए-मसर्रत आ जा 
रात बीमार पे भारी है तुझे क्या मालूम 
एक मुद्दत से यहाँ उम्र-ए-रवाँ तेरे बग़ैर 
वक़्फ़-ए-आलाम-शुमारी है तुझे क्या मालूम 
ख़ंदा-ज़न सूरत-ए-गुल दामन-ए-सद-चाक मिरा 
परचम-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है तुझे क्या मालूम 
गुल-ए-नौ-ख़ास्ता काँटों को हक़ारत से न देख 
किस की तक़दीर में ख़्वारी है तुझे क्या मालूम 
'वज्द' ना-पैदी-ए-एहसास-ए-मसर्रत का सबब 
आदत-ए-गिर्या-ओ-ज़ारी है तुझे क्या मालूम
        ग़ज़ल
कैफ़ जो रूह पे तारी है तुझे क्या मालूम
सिकंदर अली वज्द

