कहते हो इत्तिहाद है हम को
हाँ कहो ए'तिमाद है हम को
शौक़ ही शौक़ है नहीं मालूम
इस से क्या दिल निहाद है हम को
ख़त से निकले है बेवफ़ाई-ए-हुस्न
इस क़दर तो सवाद है हम को
आह किस ढब से रोइए कम कम
शौक़ हद से ज़ियाद है हम को
शैख़ ओ पीर-ए-मुग़ाँ की ख़िदमत में
दिल से इक ए'तिक़ाद है हम को
सादगी देख इश्क़ में उस के
ख़्वाहिश-ए-जान शाद है हम को
बद-गुमानी है जिस से तिस से आह
क़स्द-ए-शोर-ओ-फ़साद है हम को
दोस्ती एक से भी तुझ को नहीं
और सब से इनाद है हम को
नामुरादाना ज़ीस्त करता था
'मीर' का तौर याद है हम को
ग़ज़ल
कहते हो इत्तिहाद है हम को
मीर तक़ी मीर