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कहते हैं लोग यार का अबरू फड़क गया | शाही शायरी
kahte hain log yar ka abru phaDak gaya

ग़ज़ल

कहते हैं लोग यार का अबरू फड़क गया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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कहते हैं लोग यार का अबरू फड़क गया
तेग़ा सा कुछ नज़र में हमारी सड़क गया

मैं क्या करूँ अदा-ए-ग़ज़बनाक का बयाँ
बिजली सा मेरे सामने आ कर कड़क गया

नाले से मेरे गुल तो हुआ चाक पैरहन
बुलबुल तिरा जिगर न ये सुन कर तड़क गया

कोई गया न ख़ौफ़ से क़ातिल के सामने
मैं ही था उस के रू-ब-रू जो बे-धड़क गया

मुश्किल पड़ेगा फिर तो बुझाना जहान का
जो टुक ज़ियादा इश्क़ का शोला भड़क गया

'सौदा' चुरा चुका ही था गुलशन में गुल को मैं
क़िस्मत को अपनी क्या कहूँ पत्ता खड़क गया