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कहते हैं कि दे मेरी बला दाद किसी की | शाही शायरी
kahte hain ki de meri bala dad kisi ki

ग़ज़ल

कहते हैं कि दे मेरी बला दाद किसी की

मुबारक अज़ीमाबादी

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कहते हैं कि दे मेरी बला दाद किसी की
कानों को मज़ा देती है फ़रियाद किसी की

रोना है तिरा काम मगर दीदा-ए-तर देख
तस्वीर-ए-ख़याली न हो बर्बाद किसी की

करता हूँ गिला उन से जो वीरानी-ए-दिल का
कहते हैं ये बस्ती नहीं आबाद किसी की

आबाद ख़ुदा रक्खे तुझे कू-ए-मोहब्बत
मिट्टी नहीं होती यहाँ बर्बाद किसी की

कुछ और तो हम पास 'मुबारक' नहीं रखते
रखता है तमन्ना दिल-ए-नाशाद किसी की