कहते हैं जिस को मौत है वक़्फ़ा हयात का
दरिया-ए-ज़ीस्त एक है साहिल जगह जगह
दैर-ओ-हरम से दूर है शायद तिरा मक़ाम
याँ वर्ना हर क़दम पे है मंज़िल जगह जगह
ख़ुश-रंग-ओ-ख़ुश-निगाह ख़ुश-अंदाम ख़ूब-रू
फैले हुए हैं शहर में क़ातिल जगह जगह
ग़ज़ल
कहते हैं जिस को मौत है वक़्फ़ा हयात का
मीर यासीन अली ख़ाँ