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कहो बुतों से कि हम तब्अ सादा रखते हैं | शाही शायरी
kaho buton se ki hum taba sada rakhte hain

ग़ज़ल

कहो बुतों से कि हम तब्अ सादा रखते हैं

सय्यद आबिद अली आबिद

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कहो बुतों से कि हम तब्अ सादा रखते हैं
फिर उन से अर्ज़-ए-वफ़ा का इरादा रखते हैं

यही ख़ता है कि इस गीर-ओ-दार में हम लोग
दिल-ए-शगुफ़्ता जबीन-ए-कुशादा रखते हैं

ख़ुदा गवाह कि असनाम से है कम रग़बत
सनम-गरी की तमन्ना ज़ियादा रखते हैं

दुकान-ए-बादा-फ़रोशां के सहन में 'आबिद'
फ़रिश्ते ख़ुल्द का इक दर कुशादा रखते हैं