कहना ही मिरा क्या है कि मैं कुछ नहीं कहता
ये भी तुम्हें धोका है कि मैं कुछ नहीं कहता
ये बात कि कहना है मुझे तुम से बहुत कुछ
इस बात से पैदा है कि मैं कुछ नहीं कहता
अपनी ही कहे जाता है ऐ नासेह-ए-ना-फ़हम
तू कुछ नहीं सुनता है कि मैं कुछ नहीं कहता
रहता है वो बुत शिकवा-ए-अग़्यार पे ख़ामोश
कहता है तो कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता
कहलाओ न कुछ ग़ैर की तारीफ़ में मुझ से
समझो तो ये थोड़ा है कि मैं कुछ नहीं कहता
कहने का तो अपने है 'वफ़ा' आप भी क़ाएल
कहने को ये कहता है कि मैं कुछ नहीं कहता
ग़ज़ल
कहना ही मिरा क्या है कि मैं कुछ नहीं कहता
मेला राम वफ़ा