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कहीं शो'ला कहीं शबनम, कहीं ख़ुशबू दिल पर | शाही शायरी
kahin shoala kahin shabnam, kahin KHushbu dil par

ग़ज़ल

कहीं शो'ला कहीं शबनम, कहीं ख़ुशबू दिल पर

सय्यद अमीन अशरफ़

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कहीं शो'ला कहीं शबनम, कहीं ख़ुशबू दिल पर
वो समन-बू है बहर-रंग बहर-सू दिल पर

चमन-ए-रूह से ख़ुशबू-ए-बदन आती है
जान पर मौजा-ए-लब नफ़हा-ए-गेसू दिल पर

दिल को ख़ुद हौसला-ए-कार-ए-फ़ुसूँ-साज़ी है
कि चला था न चला है कोई जादू दिल पर

लज़्ज़त-ए-दीद ख़ुदा जाने कहाँ ले जाए
आँख होती है तो होता नहीं क़ाबू दिल पर

ये तहय्युर है कि नज़्ज़ारा कि अफ़्सून-ए-जमाल
सामने पैकर-ए-आहू रम-ए-आहू दिल पर

इस कशाकश में कहाँ जाँ के लिए जा-ए-अमाँ
दिल है मेहराब-ए-हरम मैं ख़म-ए-अबरू दिल पर

जाँ तह-ए-चश्म कि यूँ सैर-ओ-तमाशा ही सही
कोई महताब नज़र में कोई मह-रू दिल पर